Myfeelings
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आजकल मैं विशुद्ध प्रेम की खोजबीन में था, सोचता था क्या है प्रेम? क्या प्रेम भी बंटा हुआ है या प्रेम एक है! मुझे संशय होता था, जब मैं समाज कि ओर मुड़ता और देखता तो प्रेम मुझे बंटा हुआ दिखता था (रिश्तोंमें), और जब में ध्यान की गहराई से जाकर रूबरू होता तो मुझे प्रेम ही प्रेम दिखाई देता था…सच कहूँ तो मैं प्रेम ही हो जाता था और फिर उस प्रेम में, फर्क करने वाला कहीं विलीन हो जाता था…..
इतना समझ में आया की प्रेम एक भाषा है जो मौन में प्रवाहित होती है, आनंद जिसकी लहरे हैं, सतत प्रवाह जिसका मार्ग है, जो जब अपनी पूर्णता को प्राप्त होती हैं तो परमात्मा को प्राप्त होती है
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